Thursday, November 14, 2024

ज़िन्दगी ।

ज़िन्दगी
क्या है ये जिंदगी । एक ऐसा सवाल जो सबको परेशान करता है । कोई ढंग से जानता भी नही है फिर भी सबके पास जवाब है । और जवाब होने के बाद भी लोग  परेशान होकर फिर से वही सवाल करने लगते है ।
ज़िन्दगी अनसुलझी पहेली बन कर रह जाती है ।
मेरे हिसाब से जिंदगी कोई समझने की चीज नही है बस जी लो जितना खुल के जी सकते हो । खुल के जीने का भी एक ही तरीका है कि बस दिल में अरमान कम रखो ओर हर एक से हर चीज से लुत्फ उठाया जाए बस जिंदगी आसान हो जाएगी । पैसा हर आदमी कमाता है ज़िन्दगी में दिक्कतें भी हर आदमी के आती है लेकिन हर एक उन दिक्कतों से लड़ नही पाता क्यों कि हर एक को ज़िन्दगी का वो मतलब नही पता । जिससे जिंदगी आसान हो जाए । क्योंकि हम में से अधिकतर लोग थोड़ी सी दिक्कतों के कारण ही जिंदगी और भगवान को कोसने लगते हैं जबकि सारा दोष हमारा अपना ही है। हम ही उन problems के कारण होते हैं और दोष भगवान का ।
हम खुद को अगर थोड़ा सा भी दोषी मानने लगे और ये स्वीकार करने लगे कि इन दिक्कतों का कारण मैं भी हु तो आधी problems तो खुद ही मिट जाएगी ।क्योंकि स्वीकार करने पर ही उन समस्याओं का हल हम खोज सकते है  ।
प्यार हमारी जिंदगी का एक बड़ा ही महत्वपूर्ण अंश है ।
प्यार जब होता है तो इस संसार में सब कुछ अच्छा दिखाई देने लगता है क्योंकि कुछ अच्छा देखने के लिए अच्छी आंखों का होना जरूरी है । ये आंखे मन की आंखे हो सकती है ।
प्यार एक अद्भुत एहसास है इसे शब्दों में बयां नही किया जा सकता । एक पिता का, मां का, पत्नी का , पति का, बहन का, भाई का , मित्र का, । ये रिश्ते प्यार के अहसास के अनुपम उदाहरण है ।क्योंकि ये वही हो सकता है जहाँ स्वार्थ नही हो । जहाँ स्वार्थ हो वहाँ प्यार हो ही नही सकता । असल में प्यार आकर्षण से नही बल्कि भीतरी सौंदर्य से प्रेरित होना चाहिये । शक्ल, सूरत का क्या है आज है कल नही जबकि स्वभाव कभी बदल नही सकता ।
दूसरा जो महत्वपूर्ण बिंदु है हमारे जीवन का वो है हमारी सोच । हमारी सोच समाज के नियमो और रीति रिवाजो से प्रेरित होती है । कुछ हद तक यह सही भी है पर एक सौ प्रतिशत नही क्योंकि समाज एक समूह है और हम अकेले इंडिविजुअल । वैयक्तिक भिन्नता के आधार पर तो हम अलग है जबकि हमारी सोच हमारी क्षमता और हमारे अनुसार जब तक नही होगी तब तक न तो हम अपना  विकास कर पाएंगे और न ही समाज को कुछ दे पाएंगे ।
हमारी सोच उधार की न होकर खुद की हो । क्योंकि जब हम लोगो से सीखते हैं तब वो ज्ञान उधार के ज्ञान के अलावा कुछ भी नही होता है । हाँ उधार के ज्ञान से काम तो चल जाएगा पर सारी उम्र नही ।
अब यही उदाहरण देखलो
के भगवान को सब ढूंढते फिरते है क्या कभी सोचा है कि दर्शन इतने सारे क्यों है धर्म इतने सारे क्यों है, क्योंकि हर धर्म के लोगो, हर दर्शन के लोगो के सोचने का तरीका भी अलग है । इसलिए सबके भगवान भी अलग अलग है । जो जैसे सोचता है वो भगवान का स्वरूप वैसा ही कर देता है । हर एक का जैसा अनुभव होता है वो भगवान का वही स्वरूप हमारे सामने रख देता है क्या हमने कभी हिम्मत की है के मेरा भगवान कैसा हो नही की क्योंकि हम उस सोच के दायरे से बाहर आने की हिम्मत ही नही रखते । अपने आप को जरा सा भी निडर होकर यदि अपने अंदर के भगवान को देख लें तो नजारा कुछ और हि है। दुनिया की सच्चाई से बहुत दूर असली स्वर्ग हमारे मन के अंदर ही है बस देर है तो थोड़ी देर अपने साथ बैठने की । जिंदगी समझ भी आ जाएगी और  जीनी भी ।
नमस्ते ।

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